भाषा भारती परिषद, दिल्ली सरकार द्वारा पंजीकृत शैक्षणिक, गैर-लाभकारी एवं गैर-सरकारी संस्था है। यह परिषद दिल्ली सरकार के न्यास अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत है। जिसका उद्देश्य हिंदी भाषा को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समृद्ध भाषा बनाने की दिशा में निरंतर प्रयासरत रहना है।
भाषा मानव समुदाय के मध्य परस्पर विचार विनिमय का सशक्त एवं विश्वसनीय माध्यम है। भाषा मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होने के साथ-साथ उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अस्मिता का जीवंत प्रतीक भी है। भाषा के बिना मनुष्य समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
भाषा के माध्यम से ही देश की संस्कृति एवं परंपरा से प्राप्त ज्ञान-विज्ञान और गौरवमय इतिहास को जाना जा सकता है। भारत के अधिकांश क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषा हिंदी है, जिसकी लिपि देवनागरी है। हिंदी भाषा के व्यवहार क्षेत्र और उसकी जन-व्यापकता को देखते हुए ही स्वतंत्रता के पश्चात् 14 सितंबर, 1949 को भारतीय संविधान में हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया।
इस निर्णय को महत्त्व देने के लिए तथा हिंदी के प्रयोग को प्रचलित करने के लिए प्रतिवर्ष 14 सितंबर का दिन ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। संपूर्ण विश्व में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए जागरुकता पैदा करने तथा हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष ‘10 जनवरी’ को ‘विश्व हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
हिंदी भाषा अत्यंत सहज एवं सरल होने के साथ ही एक समृद्धशाली भाषा है, जिसमें अभिव्यंजना की अपार क्षमता है। हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार और उसका विकास करना हमारा संवैधानिक एवं नैतिक दायित्व भी है, ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। हिंदी भाषा के माध्यम से ही भारतीय साहित्य, बोलियों और क्षेत्रीय भाषाओं में समन्वय स्थापित कर हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से ही ‘भाषा भारती परिषद’ की स्थापना की गई है।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी, हिंदी भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी लोगों के बीच संपर्क स्थापित करने का माध्यम रही और उसने उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक सभी देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए ही महात्मा गाँधी जी ने कहा था- ‘‘अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता-समझता है और हिंदी इस दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है।
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